'होली आयी रे कन्हाई, रंग बरसे
बजा दे ज़रा बाँसुरी...'
सुबह के दस बज रहे थे जब 'वैदेही गेम्स वर्ल्ड' के मालिक राघव ने अपने दफ़्तर के अंदर कदम रखा और उसके कानों से गाने के ये बोल टकराये।
उसने चौंकते हुए अपने आस-पास देखा तो पाया दफ़्तर में काम करने वाला कोई भी शख्स अपनी जगह पर नहीं था।
सारी कुर्सियों को खाली देखकर उसने मंजीत को आवाज़ लगायी जो यहाँ का इकलौता चपरासी था।
पहली पुकार पर जब मंजीत उसके सामने नहीं आया तब राघव ने एक और बार उसे पुकारा लेकिन इस बार भी नतीजा शून्य ही था।
राघव को अपने कर्मचारियों से ऐसी अवहेलना की आदत नहीं थी, इसलिए उसने गुस्से में अपने कदम उस ओर बढ़ा दिये जहाँ से गाने की आवाज़ें अब भी आ रही थीं।
जब उसने कॉन्फ्रेंस-हॉल में अपने सभी कर्मचारियों समेत कंपनी की चीफ मैनेज़र तारा को इस होली गीत पर नृत्य करते हुए देखा तब उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।
तारा सिर्फ राघव की कंपनी में मैनेज़र ही नहीं थी बल्कि वो उसके सबसे अच्छे दोस्तों में से एक थी, इसलिए उन सबको टोके बिना राघव वहाँ से बाहर जा ही रहा था कि तभी तारा ने उसे पुकारते हुए कहा, "अरे राघव, तुम आ गये।"
"हाँ, आ गया और ये भी देख लिया कि तुम सब अपने काम को लेकर कितने गंभीर हो।"
राघव का ये कहना था कि सभी कर्मचारी सिर झुकाकर वहाँ से बाहर निकलते हुए अपनी-अपनी कुर्सियों पर जाकर बैठ गये।
"मैं आपके लिए कॉफ़ी लाता हूँ सर।" मंजीत ने भी सहमी हुई आवाज़ में कहा और बाहर जाते हुए उसने बेचारगी भरी दृष्टि से तारा की तरफ देखा।
तारा ने आँखों ही आँखों में मंजीत को न घबराने का संकेत करते हुए राघव से कहा, "तुम नाराज़ हो क्या?"
"नाराज़? बिल्कुल भी नहीं। माफ़ करना मैं इसे काम की जगह समझकर आ गया था। मुझे पता ही नहीं था कि ये कॉन्फ्रेंस-हॉल असल में तुम सबका पिकनिक स्पॉट है।"
राघव का ये तंज सुनकर भी तारा की मुस्कुराहट कम नहीं हुई।
"चलो, तुम्हारे केबिन में चलकर बात करते हैं।" तारा ने राघव का हाथ थामते हुए कहा तो राघव अपना हाथ छुड़ाकर बोला, "तारा प्लीज़, बिहेव योर सेल्फ, ये हमारा दफ़्तर है घर नहीं।"
"ओके बॉस, आई एम रियली वेरी सॉरी। क्या मैं आपसे कुछ ज़रूरी बात कर सकती हूँ?"
तारा ने अब गंभीर होकर कहा तो राघव बिना कुछ बोले अपने केबिन की तरफ बढ़ गया।
राघव के पीछे-पीछे उसके केबिन में आने के बाद तारा ने कहा, "सर, अगर आप इज़ाज़त दें तो मैं अपने सभी सहकर्मियों की तरफ से आपसे कुछ कहना चाहती हूँ।"
"जी, मिस तारा। कहिये, आपको क्या कहना है?"
"सर, जैसा की आप जानते हैं दो दिन के बाद होली का त्योहार है, इसलिए आज शुक्रवार के दिन मैंने सोचा क्यों न हम दफ़्तर में फन-फ्राइडे रखें और फिर होली के दिन अगर कम्पनी की तरफ से सभी सहकर्मियों और उनके परिवार के लिए अगर होली पार्टी रखी जाये तो सबको इससे बहुत ख़ुशी होगी।
इसी बहाने हम सब अपने पिछले प्रोजेक्ट की कामयाबी का जश्न भी मना लेंगे और अगले प्रोजेक्ट में जी जान से काम करने के लिए अपने आप को तरोताज़ा भी कर लेंगे।"
तारा की बात सुनकर राघव एक पल के लिए चुप हो गया।
उसे चुप देखकर तारा को लगा शायद राघव होली पार्टी के लिए नहीं मानेगा लेकिन अगले ही पल राघव ने कहा, "ठीक है मिस तारा। आज फन-फ्राइडे में आपको और बाकी सभी लोगों को जो भी करना है आप कीजिये और होली की पार्टी कैसे, कहाँ करनी है उसकी प्लानिंग करके अकाउंटेंट से खर्च की रकम ले लीजियेगा।"
"ओह माय गॉड राघव, तुम सच कह रहे हो? तुम मेरी इस बात पर बिल्कुल भी गुस्सा नहीं हुए?" तारा ने एक बार फिर ख़ुशी से चहकते हुए राघव का हाथ थाम लिया तो राघव ने कहा, "मैं कभी झूठ नहीं बोलता तारा। चलो अब मुझे जाने दो और तुम अपना फन-फ्राइडे एंजॉय करो।"
"लेकिन राघव, मेरा मतलब है सर आप कहाँ जा रहे हैं? ये दफ़्तर का समय है और अगर इस समय आप भी हम सबके साथ होंगे तो हमें अच्छा लगेगा।"
तारा की बात सुनकर राघव ने अपना बैग उठाते हुए कहा, "मुझे दफ़्तर में सिर्फ काम करना पसंद है और अपनी छुट्टी मैं अपने तरीके से बिताना चाहूँगा। होप यू डोंट माइंड।"
इससे पहले की तारा कुछ और कह पाती राघव तेज़ कदमों से वहाँ से बाहर जा चुका था।
तारा ने भी अब बाहर आते हुए अपने सभी सहकर्मियों को वापस इकट्ठा किया और सबके साथ होली के गीतों का आनंद लेते हुए होली पार्टी के लिए सबकी सहमति से प्लानिंग करने में जुट गयी।
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बनारस, जिसे विश्व के प्राचीनतम जीवित शहर की संज्ञा दी गयी है, जब वहाँ ब्रह्म-मुहूर्त की पावन बेला में मधुर सुरों की लहरियां गंगा की धाराओं को स्पर्श करते हुए दूर आसमान तक अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती हैं, तब ऐसा प्रतीत होता है मानों सुबह-ए-बनारस की तर्ज पर नृत्य करते हुए ही सूरज की रश्मियां धीरे-धीरे संपूर्ण शहर के धरातल को स्पर्श कर रही हैं।
इसी बनारस के रथयात्रा क्षेत्र में राघव ने दो वर्ष पहले गेमिंग डिज़ाइन की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपनी छोटी सी कंपनी 'वैदेही गेमिंग वर्ल्ड' की शुरुआत की थी।
तारा और राघव की दोस्ती तबसे थी जब वो दोनों नौवीं कक्षा में पढ़ते थे।
उन दिनों जगह-जगह पर विडियो गेम्स की शॉप हुआ करती थी जहाँ पैसे देकर थोड़ी देर वीडियो गेम खेलने की सुविधा उपलब्ध होती थी।
राघव अक्सर अपनी जेबखर्च से पैसे बचाकर ऐसी गेम शॉप्स में वीडियो गेम खेलने पहुँच जाया करता था।
एक दिन जब वो अपना होमवर्क पूरा करके वीडियो गेम खेलने पहुँचा तब उसने अपनी क्लासमेट तारा को वहाँ देखा जो पूरी तल्लीनता से गेम खेलने में लगी हुई थी।
अपना गेम खत्म करके जब तारा उठी तब उसकी नज़र भी राघव पर पड़ी।
उसने राघव की तरफ देखकर मुस्कान दी तो अपने अक्खड़ स्वभाव के लिए मशहूर राघव भी स्वयं को मुस्कुराने से रोक नहीं पाया।
उसके पास आते हुए तारा ने कहा, "तो तुम्हें भी गेमिंग का शौक है?"
"हाँ बहुत ज़्यादा, और शायद तुम्हें भी।"
राघव की बात पर सहमति जताते हुए तारा ने कहा, "तुम हमेशा यहीं खेलने आते हो?"
"हाँ ज़्यादातर क्योंकि ये मेरे घर के पास है।"
"ओह अच्छा! ठीक है तो अब तुम खेलो मैं चलती हूँ।" तारा ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा तो एक पल के लिए उसे थामकर राघव बोला, "कल स्कूल में मिलते हैं।"
स्कूल के बाद अब अक्सर इस गेम शॉप में राघव और तारा की मुलाकात हो जाया करती थी।
इन छोटी-छोटी मुलाकातों ने कब उनके बीच पक्की वाली दोस्ती की नींव रख दी उन्हें ज़रा भी अहसास नहीं हुआ।
नौवीं के बाद दसवीं, और फिर बारहवीं के बाद जब अपने-अपने कैरियर की दिशा चुनने की बारी आयी तब अस्सी घाट पर बैठकर मूंगफली खाते हुए बातों-बातों में राघव ने तारा से कहा, "तुझे पता है तारा मैं अक्सर सोचता हूँ कि हम जो ये विडियो गेम्स खेलते हैं इन्हें कोई न कोई तो बनाता ही होगा। अगर मैं भी इन्हें बनाने का तरीका सीख जाऊँ तो कितना अच्छा होगा न।
फिर मैं अपने और तेरे लिए अपनी पसंद की गेम्स बनाया करूँगा।"
"अरे ये आइडिया तो बहुत ही अच्छा है। क्यों न हम आगे की पढ़ाई इसी दिशा में करें और अपना गेमिंग वर्ल्ड शुरू करें।
फिर तो हमारा काम हमारे लिए काम रहेगा ही नहीं, वो हमारा मनोरंजन बन जायेगा और तब हम इतना मन लगाकर काम करेंगे कि जल्दी ही गेमिंग की दुनिया में हमारे नाम का डंका बजेगा।"
"अच्छा, पर ये होगा कैसे? मेरा मतलब है इसकी पढ़ाई कहाँ होती है? तुझे कुछ पता है?"
"मैं पता कर लूँगी बस तू मुझे एक-दो दिन का समय दे।"
तारा ने कहा तो सहमति में सिर हिलाते हुए अगले दिन मिलने की बात कहकर राघव अपने घर की ओर बढ़ गया।
क्रमश: